सर्व मनोकामना पूर्ण श्रीकृष्ण कृत दुर्गा स्तोत्र


भगवान श्री कृष्ण ने गाई थी माता दुर्गा की यह स्तुति 




नवरात्रि पर्व पर श्रद्धा और प्रेमपूर्वक महाशक्ति भगवती देवी की उपासना करने से यह निर्गुण स्वरूपा देवी पृथ्वी के सारे जीवों पर दया करके स्वयं ही सगुणभाव को प्राप्त होकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश रूप से उत्पत्ति, पालन और संहार कार्य करती हैं। 


श्री कृष्ण कृत दुर्गा स्तोत्र


त्वमेवसर्वजननी मूलप्रकृतिरीश्वरी। 
त्वमेवाद्या सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका॥
कार्यार्थे सगुणा त्वं च वस्तुतो निर्गुणा स्वयम्।
 परब्रह्मस्वरूपा त्वं सत्या नित्या सनातनी॥
तेज:स्वरूपा परमा भक्तानुग्रहविग्रहा। 
सर्वस्वरूपा सर्वेशा सर्वाधारा परात्परा॥
सर्वबीजस्वरूपा च सर्वपूज्या निराश्रया। 
सर्वज्ञा सर्वतोभद्रा सर्वमङ्गलमङ्गला॥
सर्वबुद्धिस्वरूपा च सर्वशक्ति स्वरूपिणी। 
सर्वज्ञानप्रदा देवी सर्वज्ञा सर्वभाविनी।।


त्वं स्वाहा देवदाने च पितृदाने स्वधा स्वयम्। 
दक्षिणा सर्वदाने च सर्वशक्ति स्वरूपिणी।।
निद्रा त्वं च दया त्वं च तृष्णा त्वं चात्मन: प्रिया।
 क्षुत्क्षान्ति: शान्तिरीशा च कान्ति: सृष्टिश्च शाश्वती॥
श्रद्धा पुष्टिश्च तन्द्रा च लज्जा शोभा दया तथा। 
सतां सम्पत्स्वरूपा श्रीर्विपत्तिरसतामिह॥
प्रीतिरूपा पुण्यवतां पापिनां कलहाङ्कुरा।
 शश्वत्कर्ममयी शक्ति : सर्वदा सर्वजीविनाम्॥
देवेभ्य: स्वपदो दात्री धातुर्धात्री कृपामयी।
 हिताय सर्वदेवानां सर्वासुरविनाशिनी॥


योगनिद्रा योगरूपा योगदात्री च योगिनाम्। 
सिद्धिस्वरूपा सिद्धानां सिद्धिदाता सिद्धियोगिनी॥
माहेश्वरी च ब्रह्माणी विष्णुमाया च वैष्णवी। 
भद्रदा भद्रकाली च सर्वलोकभयंकरी॥
ग्रामे ग्रामे ग्रामदेवी गृहदेवी गृहे गृहे। 
सतां कीर्ति: प्रतिष्ठा च निन्दा त्वमसतां सदा॥
महायुद्धे महामारी दुष्टसंहाररूपिणी। 
रक्षास्वरूपा शिष्टानां मातेव हितकारिणी॥
वन्द्या पूज्या स्तुता त्वं च ब्रह्मादीनां च सर्वदा।
 ब्राह्मण्यरूपा विप्राणां तपस्या च तपस्विनाम्॥


विद्या विद्यावतां त्वं च बुद्धिर्बुद्धिमतां सताम्।
 मेधास्मृतिस्वरूपा च प्रतिभा प्रतिभावताम्॥
राज्ञां प्रतापरूपा च विशां वाणिज्यरूपिणी। 
सृष्टौ सृष्टिस्वरूपा त्वं रक्षारूपा च पालने॥
तथान्ते त्वं महामारी विश्वस्य विश्वपूजिते। कालरात्रिर्महारात्रिर्मोहरात्रिश्च मोहिनी॥
दुरत्यया मे माया त्वं यया सम्मोहितं जगत्। 
यया मुग्धो हि विद्वांश्च मोक्षमार्ग न पश्यति॥
इत्यात्मना कृतं स्तोत्रं दुर्गाया दुर्गनाशनम्। 
पूजाकाले पठेद् यो हि सिद्धिर्भवति वाञ्िछता॥


वन्ध्या च काकवन्ध्या च मृतवत्सा च दुर्भगा।
 श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सुपुत्रं लभते ध्रुवम्॥
कारागारे महाघोरे यो बद्धो दृढबन्धने।
 श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं बन्धनान्मुच्यते ध्रुवम्॥
यक्ष्मग्रस्तो गलत्कुष्ठी महाशूली महाज्वरी। 
श्रुत्वा स्तोत्रं वर्षमेकं सद्यो रोगात् प्रमुच्यते॥
पुत्रभेदे प्रजाभेदे पत्‍‌नीभेदे च दुर्गत:। 
श्रुत्वा स्तोत्रं मासमेकं लभते नात्र संशय:॥
राजद्वारे श्मशाने च महारण्ये रणस्थले। 
हिंस्त्रजन्तुसमीपे च श्रुत्वा स्तोत्रं प्रमुच्यते॥
गृहदाहे च दावागनै दस्युसैन्यसमन्विते। 
स्तोत्रश्रवणमात्रेण लभते नात्र संशय:॥
महादरिद्रो मूर्खश्च वर्ष स्तोत्रं पठेत्तु य:। 
विद्यावान धनवांश्चैव स भवेन्नात्र संशय:॥


इस स्तोत्र का स्तवन भगवान् श्रीकृष्ण ने भगवती दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए किया था 
इस स्तोत्र के पाठ सेसभी प्रकार की सिद्धि प्राप्त होती है। बन्ध्या, काकबन्धया ओर मृत बच्चों को जन्म देने वाली स्त्री पुत्रवती होती है।
टीबी, कोढ़, भयंकर शारीरिक पीड़ा और ज्वर से मुक्त हो जाता है। विभिन्न प्रकार के भेदभाव और अभावों से ग्रस्त व्यक्ति मात्र 1 माह इस स्तोत्र के नियमित पाठ से सब पुनः प्राप्त कर लेता है। राजा के पास, श्मशान में , युध्द स्थल एवम जंगल में किसी प्रकार की हानि नहीं होती। दावानल, चोर डाकुओं से गृह रक्षा होती है, शत्रु सेना भी हानि नहीं पहुंचा सकती।
महादरिद्र और महामूर्ख व्यक्ति इसके 1 वर्ष पर्यंत पाठ से धनवान और विद्यावान हो जाता है।